शरीर वैसे हड्डी-माँस से बना दिखाई देता है। इसे मिट्टी का पुतला और क्षणभंगुर कहा जाता है, परन्तु इसके भीतर विद्यमान जीवटता को देखते हैं तो कहना पडेगा कि उसकी संरचना अष्ट धातुओं से भी मजबूत तत्वों द्वारा मिलकर बनी हुई है।
छोटी-मोटी, टूट-फूट, हारी-बीमारी तो रक्त के श्वेतकण तथा दूसरे संरक्षणकर्ता, शामक तत्व अनायास ही दूर करते रहते हैं, परन्तु भारी संकट आ उपस्थित होने पर भी यदि साहस न खोया जाय तो उत्कट इच्छा शक्ति के सहारे उनका सामना सफलतापूर्वक किया जा सकता है। निश्चित ही मृत्यु की विभीषिका और अनिवार्यता से इन्कार नहीं किया जा सकता, न ही विपत्ति का संकट हल्का करके आँका जा सकता है, परन्तु इतना होते हुए भी जिजीविषा की-जीवन आकाँक्षा की-सामर्थ्य सबसे बडी है और उसके सहारे संकटों को पार किया जा सता है।
जीवन के लिए संकट प्रस्तुत करने वाले क्षण बहुत लोगों के सामने आते हैं। उनमें से आधे लोग तो भयभीत होकर हिम्मत हार बैठते हैं। और उस कातर मनःस्थिति में ही बेमौत मारे जाते हैं। पेड़ के नीचे चीते को खड़ा देखकर बन्दर हक्का-बक्का हो जाता है और हड़बडी घबड़ाहट में नीचे आ गिरता है। चीता उसे चुपचाप मुँह में दबाकर चल देता है। विपत्ति की घड़ी सामने आने पर अक्सर लोग ऐसी ही भयभीत स्थिति में फंस जाते हैं और बेमौत मरते हैं। इसके विपरित यदि उस कठिन समय में उसने अपने मनोबल को स्थिर रखा तो बहुत सम्भव है कि वह विपत्ति बच जाती।
इच्छा शक्ति की प्रचण्डता अंग प्रत्यंग में ऐसी अद्भुत सुरक्षा उत्पन्न कर देती है जिसके सहारे माटी का पुतला कही जाने वाली अपनी यही देह मृत्युँजय बन जाती है। मनस्वी और मनोबल सम्पन्न लोगों के ऐसे अगणित उदाहरण अपने चतुर्दिक बिखरे देखे जा सकते हैं। शरीर की शक्ति, सामर्थ्य सीमित है यह ठीक है, पर शरीर से भी अधिक शक्तिशाली और सामार्थ्यवान है – मनोबल। यह मनोबल दुर्बल से दुर्बल काया को भी मृत्युँजयी बना देता है, बड़े से बड़े संकटों को भी पार करा देता है और इसका अभाव साधारण संकटों में भी परास्त कर देता है।
स्वामी विवेकानन्द ने मनोबल की महत्ता बताते हुए कहा है, “मनोबल ही सुख सर्वस्व है। यही जीवन है और यही अमरता है तथा मनोदौर्बल्य ही रोग है, दुःख और मृत्यु है”। मनोबल के द्वारा शरीर को अजेय वज्र के समान बनाया जा सकता है। यदि इस शक्ति का भली-भाँति विकास किया जाय तो साधारण से दीखने वाले मानवीय व्यक्तित्व में ही ऐसी विशेषताएँ उत्पन्न की जा सकती है जो साधारणतया असम्भव महसूस पड़ती हैं। परन्तु जो लोग शरीर पर मन के नियंत्रण का तथ्य जानते हैं उन्हें यह समझना कठिन नहीं होना चाहिए कि इस शक्ति के बल पर देह के अवयव अपनी प्रकृति बदल सकते हैं और मन की इच्छानुसार ऐसी हलचलें भी कर सकते हैं। जो सामान्य प्रयत्नों के द्वारा सम्भव ही प्रतीत हो।
साम्राज्ञी मेरीलुइस के संबंध में प्रसिद्ध है कि वह अपनी इच्छानुसार अपने कानों को बिना हाथ से छुए किसी भी दिशा में मोड़ सकती थीं और आगे पीछे हिला सकती थी। एक फ्राँसीसी अभिनेता अपनी इच्छानुसार अपने बालों को घुमा सकता था। बालों को गिराने, उठाने और घुँघराले बनाने की क्रिया इच्छानुसार कर सकने में अपनी अद्भुत क्षमता के बल पर उसने ढ़ेरों रुपये कमाये। वह एक बाल को घुंघराला बना लेता और ठीक उसी के बगल वाला बाल चपटा कर लेने का अपना आर्श्चयजनक करतब भी कर दिखाता था। डाक्टरों ने उसका परीक्षण किया और ‘प्रो॰ आगस्ट कैवेनीज’ ने बताया कि उसने अपने सिर की माँस-पेशियों और त्वचा के तन्तुओं को अपनी इच्छाशक्ति के द्वारा असाधारण रुप से विकसित और संवेदनशील बना लिया है।
एक व्यक्ति ने अपने पेट को प्रशिक्षित किया और उसने असाधारण खुराक खाने में ही नहीं उसे पचाने में भी सफलता प्राप्त की। ग्रीस का क्रोटोनाकामिलो नामक पेटू अधिक खाने और पचाने के लिए प्रसिद्ध था। वह एक दिन में 150 पौंड माँस तक खा जाता था। डेट्रायर (मिशीगन) के एडिको, जो एक रेल्वे मजदूर था, ने तो कमाल ही कर दिया। उसने 60 सुअरों के माँस से बनी हुई टिकिया एक दिन में खाकर पचाई। एडिको की सामान्य खुराक सत्तर आदमियों के बराबर थी। उसने केवल इसीलिए शादी नहीं की कि वह जो कमाता था उससे उसका अपना पेट ही नहीं भरता था। फिर बीबी को क्या खिलाता? उसे जितना कुछ वेतन मिलता था, वह उसके लिए प्रायः कम पड़ता था और ऐसी दश में उसके मित्र लोग उसकी सहायता करते थे ताकि वह भूखा न मरे।
कहा जाता है कि नींद न आने पर आदमी पागल हो जाता है और अकाल मृत्यु हो जाती है किन्तु ऐसे भी उदाहरण हैं जिनमें बिल्कुल न सोने वाले लोग सामान्य जीवन जीते रहे और अपना काम ठीक प्रकार चलाते रहे। पेरिस का प्रख्यात वकील जैक्विसल हरवेट 72 वर्ष तक जीवित रहा। इस अवधि में वह 68 वर्ष तक एक क्षण के लिए भी नहीं सोया। चार वर्ष की आयु में ही उसकी नींद खो गई थी। हुआ यह था कि फ्राँस के सम्राट सोलहवें लुई को जब सन् 1793 में फाँसी दी गई तो जैक्विसल भी अपनी माँ के साथ वह दृश्य देखने गया। शूली पर चढ़ाये जाने का दृश्य देखकर जैक्विसल के मन में ऐसी दहशत बैठी कि वह बुरी तरह डर गया और मूर्छित अवस्था में उसे अस्पताल पहुचाया गया। वहाँ वह ठीक तो हो गया, पर उसकी नींद बिल्कुल गायब हो गई। वह इसके बाद एक क्षण के लिए भी नहीं सोया। परन्तु इसका उसके स्वास्थ्य पर कोई बुरा प्रभाव नहीं पड़ा।कहा गया है कि मन की शक्ति का कोई पारावार नहीं हैं। कई बार तो सये शक्तियाँ अनायास ही जागृत हो जाती हैं, परन्तु ऐसा होता अपवाद रुप में ही है। उन्हें जागृत करने के अलग अभ्यास है जिन्हें योग-साधना भी कहा जा सकता है।
इच्छा शक्ति की प्रचण्डता अंग प्रत्यंग में ऐसी अद्भुत सुरक्षा उत्पन्न कर देती है जिसके सहारे माटी का पुतला कही जाने वाली अपनी यही देह मृत्युँजय बन जाती है। मनस्वी और मनोबल सम्पन्न लोगों के ऐसे अगणित उदाहरण अपने चतुर्दिक बिखरे देखे जा सकते हैं। उसने अपने सिर की माँस-पेशियों और त्वचा के तन्तुओं को अपनी इच्छाशक्ति के द्वारा असाधारण रुप से विकसित और संवेदनशील बना लिया है।