शांति की रूपरेखा:
ये शब्द सिर्फ व्यक्तिगत शांति की बात नहीं अपितु सर्वत्र शांति की बात है। मौन और शांति में अंतर है। मौन में सब कुछ स्थिर हो जाता है। लेकिन शांति सक्रिय होते हुए भी शांति से रहने की स्थिति है।
शांति क्या है और शांति कहाँ है?
शांति क्या है, इस बात को हम इस रीति समझ सकते हैं कि जब हम खुशी की अनुभूति करते हैं उस समय तो हम active हैं, परंतु क्या हम कहेंगे कि हम शांत हैं? वास्तव में मन एकदम शांत हो जाये, शांति मन के ठहराव को नहीं कहेंगे। शांति मन के सुंदर विचार जो आत्मा के स्वधर्म को विकसित करते हुए मन में सुखों की अविरल धारा को उत्पन्न करने की चेष्टा करते हैं, ऐसी ही कुछ स्थिति को शांति कह सकते हैं। परमात्मा कहते हैं शांति हर आत्मा के गले का हार है और शांति आत्मा का स्वधर्म है। इस शांति के स्वधर्म में टिके रहना ही शांति की आत्म अनुभूति करना है।
शांति को शक्ति क्यों कहते हैं?
शांति चित की वो अवस्था है जब हम इस अवस्था में टिकते हैं तो सभी विचार बहुत स्पष्ट हो जाते हैं। विचारों को परखने की शक्ति आत्मा में आजाती है। और क्योंकि स्पष्टता होने के कारण बुद्धि की परख शक्ति भी active होती है। ये शक्ति ही सभी आत्मा के विभिन्न प्रकार के बंधन से मुक्त होने का हल स्पष्ट करती है। निर्णय शक्ति की उत्पन्नता भी शांति की शक्ति से आती है। इस शक्ति को हमेशा emerge रूप में रखने से आत्म बल महसूस होता है। और इस आत्म बल से हम हर प्रकार के विरोधाभास को खत्म कर सकते हैं। यही हमारे मनुष्य जीवन जो कि अध्यात्म के बल से निखर जाता है।
शांति की अनुभूति क्या है?
वास्तव में शांति मन की वास्तविक अवस्था है। क्योंकि अभी के प्रमाण जिस प्रकार की दुनिया देखने को आती है, मनुष्य के विभिन्न प्रकार के संस्कार जो टकराव और गलत कर्म के कारण भोगने की व्यथा है उससे मन एकदम अशांत लगते हैं। शांति की अनुभूति आत्मा को तब होती है जब उसे समझ आजाये की मेरा वास्तविक स्वभाव शांति है।
शांत स्थिति में मन एकाग्र हो जाता है। मन को एकाग्र होने के लिए विचारों का बंद होना आवश्यक नहीं परंतु एक श्रेष्ठ विचार में टिक जाना और निरंतर उसमें मगन रहना। ये स्थिति आत्मा की उन्नति भी करती है। ये अनुभूति होना शांत एवम एकाग्र मन की संरचना है।
क्या शांति के लिए कहीं और जाने की जरूरत है?
ये हम सब को ज्ञान की रीति पता है कि शांति हमारे अंदर ही है। परंतु जब वो हमारे अंदर है तो बाहर भी तो प्रत्यक्ष होनी चाहिए। शांति का गुण बाहर भी तो दिखना चाहिए। क्योंकि गुणी से गुण तो दिखता ही है। अब एक तरफ तो हम कहते हैं कि शांति हमारे अंदर ही है और दूसरी तरफ अशांति की नूँध इस संसार में दिखती है। अब शांति की नूँध कैसे हो।
वास्तव में ये जान लेना ज्ञान के चक्षु को खोलना की मुझ आत्मा का स्वधर्म शांत ही है तो जब मैं अपनी सोंच और कर्म को check करूँ की कहाँ तक शांति मुझसे प्रत्यक्ष है तब मैं भीतर से शांति को प्रकट कर सकता हूँ जो मुझमें ही विद्यमान है। जिसको कोई छीन नहीं सकता।
बस आत्म बल से उस शांति को प्रकट करने की ज़रूरत है जो आत्मा का है ही वास्तविक गुण। इसलिए कहा गया कि शांति के लिए दर दर भटकने की ज़रूरत नहीं है। ये स्वयं की आत्म अनुभूति से सहज रूप से प्रकट ही रहती है।
शांति और विज्ञान कैसे जुड़े हैं?
शांति ही वो स्थिति है जो विज्ञान से बहुत गुह्मता से जुड़ा है। विज्ञान वाले भी शांति में जाकर विभिन्न खोजे करते हैं और अध्यात्म वाले भी शांति के आधार से ही आत्मिक उन्नति करते हैं। कहें तो दोनों ही मनुष्य जीवन को संवारते हैं। परंतु अध्यात्मक चेतना माना आत्मिक उन्नति के लिए शांत चित्त बहुत आवश्यक है। शांति में मन के विचार स्पष्ट हो जाते हैं। जिससे मनोबल बढ़ने लगता है। और विचार सटीक होते हैं। इस स्थिति में हम कोई भी विचार को सिद्ध कर सकते हैं। जिसका प्रमाणिक विज्ञान की खोज है। जहां मनुष्य जीवन को सहज करने हेतु वैज्ञानिकों ने शांति को ही आधार बनाकर कई खोजें की हैं।
निष्कर्ष:
अतः शांति एक शक्ति है और आत्मा का वास्तविक गुण है जिसके अभ्यास से आत्मा का उत्थान होता है। मनोबल का विकास होता है। और आत्मा जीवन में आने वाली अनेक प्रकार की परिस्थितियों को सहज पार कर सकती है बिना कोई दुख दर्द को भोग कर। और राजयोग के अभ्यास से ही आत्मा एकदम अपने शांति की अनुभूति में टिक जाती है। मन नियंत्रण में होता है और विचार स्थिर होने कारण बुद्धि एकाग्र और सटीक होती है। यही सच्चे राजयोगी की पहचान है।