ओम शांति!
परमात्मा द्वारा सिखाए योग का नाम ही है राजयोग अर्थात पहले अपने कर्मन्द्रियों का राजा, फिर मन बुद्धि व संस्कार का राजा बनना।
हम जो Godly students साधनों की इतनी उन्नति के समय पर ज्ञान में आए हमें बहुत ज्ञान के विस्तार का सौभाग्य मिला लेकिन एक अलग ही माया का सूक्ष्म रूप भी आया साधनों के रूप में चाहें फोन हो या अन्य साधन हों।
साधना के बिना साधनों का प्रयोग बाबा से दूर ले जाएगा और ज़ब तक समझ आएगा शायद बहुत देर हो चुकी हो. यहाँ साधना का अर्थ केवल sitting योग ही नहीं लेकिन मन और बुद्धि की एकाग्रता, कर्मन्द्रियों की एकाग्रता भी है.. हम कहाँ तक बिना साधनों के मन और बुद्धि को एकाग्र रख पाते ❓️ क्या हमेशा हमें कुछ class या गीत सुन ही time सफल करना है ❓️कहीं यह भी
बुद्धि का एक distraction तो नहीं ❓️ इसकी चेकिंग कर सकते हैँ 10 मिनट 5 स्वरूप का अभ्यास खुद से करें और देखें कितनी बार मन track से भटक गया ❓️ बाबा के स्वरूप पर मन को एकाग्र करें ( बुद्धि से ) और देखें केवल बाबा शब्द और बाबा के स्वरूप का रस कहाँ तक कितनी देर तक अनुभव होता ❓️
अपना प्रैक्टिकल अनुभव सुनाएं तो लगभग 2 साल गीत और commentries की help से योग किया.. जिसने अच्छा अनुभव भी कराया.. लेकिन ज़ब silence में बैठकर योग शुरू किया तो समझ आया योग क्या है ❓️ हम खुद ही कितना complicated बना रहे थे 🥹 बस मन ने कहा मेरा बाबा और उड़ चला बाबा से feelings की sharing कितना सहज योग अपने भाग्य की स्मृति में गदगद होता मन कितना सहज योग है और कभी मन भारी भी हो तो खुद को class कराओ जैसे दूसरों को कराते… मन से प्यार से बात करो ये बहुत बहुत प्यारा है फट से मान जाता… और गीत भी तो मन के भी हो सकते जिसका एक शब्द भी दुनिया से पार ले जाता.. जितना समय कर्मन्द्रियों के आधार से गीत या commentry का रस लेना कभी अशरीरी नहीं होने देता क्यूंकि आत्मा तो शरीर से detach हुई ही नहीं.. और वह sweet silence की स्थिति फील नहीं होंगी।
इसी प्रकार मैं आत्मा हुँ इस की अद्भुत गहराई केवल और केवल एकान्त और मौन में होती.. क्लियर बुद्धि मौन में ही होती.. संस्कार परिवर्तन silence की तपस्या के बिना नहीं हो सकते… Silence की तपस्या ही कर्मयोगी बनाती है और शान्ति की शक्ति एक सेकंड मे कर्म में भी जमा कर सकते।
लेकिन इसका अर्थ ये नहीं कि साधनों का प्रयोग करना ही नहीं है लेकिन
उन पर dependent न होकर आंतरिक साधना को ही लक्ष्य बनाना है क्यूंकि यह सब आधार जल्दी ही समाप्त होंगे.. मुरली भी नहीं मिलेगी.. फिर केवल मैं और मेरा बाबा यही ब्राह्मण जीवन का आधार होगा।
अच्छा!
ओम शांति!