गृहस्थ व्यवहार में रहते याद बढ़ानी है

(Murli Date: 04-03-2023)

तुम रूहानी यात्रा पर हो तुम्हें देह का भान और पुरानी दुनिया को भूल वापस घर चलना है, एक बाप की याद में रहना है

ज्ञान:

  • बच्चों को समझाया हुआ है जैसे आत्मा शान्त स्वरूप है वैसे परमपिता परमात्मा भी शान्त स्वरूप हैं। ओम् का अर्थ भी समझाया हुआ है कि ओम् अर्थात् अहम् आत्मा, मम माया। 
  • अब बाप कहते हैं हे राही …., कहाँ के राही? परमधाम के राही। यह हो गई रूहानी यात्रा रूहों के लिए। 
  • आत्मा इमार्टल है। उस अविनाशी आत्मा में 84 जन्मों का पार्ट भरा हुआ है। परम आत्मा में भी पार्ट भरा हुआ है। इसको कहा जाता है ड्रामा की कुदरत।
  • इस समय बाबा ने इस कल्प वृक्ष का और ड्रामा का ज्ञान दिया है। कहते हैं तुम अब मिले हो, कल्प-कल्प मिलते रहेंगे। 
  • इस समय बाबा ने इस कल्प वृक्ष का और ड्रामा का ज्ञान दिया है। कहते हैं तुम अब मिले हो, कल्प-कल्प मिलते रहेंगे।

योग:

  • तुम बच्चे समझते हो हम रूहानी यात्रा पर हैं। गृहस्थ व्यवहार में रहते याद बढ़ानी है। वह है बहुत स्वीट चीज़।
  • बाप रचता भी है, बच्चों को क्रियेट करते हैं। ब्रह्मा मुख वंशावली बनाया है। सब कहते हैं हम शिवबाबा के बच्चे हैं फिर डायरेक्शन मुख्य देते हैं कि मनमनाभव।
  • देह सहित देह के सभी सम्बन्ध आदि भूल जाओ। एक बाप को याद करना है। मेहनत बिगर कोई बादशाही थोड़ेही मिलेगी। 
  • मनमनाभव का अक्षर गीता में भी आदि और अन्त में है। यही कहते हैं कि मुझे याद करो। मैं तुमको विश्व का मालिक इन लक्ष्मी-नारायण जैसा बनाऊंगा।
  • यह झाड है, बीज ऊपर है। कल्प वृक्ष के नीचे जगदम्बा बैठी है, जो सभी के सुख की कामना पूरी करती है। 

धारणा:

  • पहले-पहले तो निश्चय करना है – मैं आत्मा हूँ, देह नहीं। इस देह का भान भूल जाना है। 
  • साक्षी हो हर एक की अवस्था को देखते हैं कि इनकी अवस्था कैसी है? बेहद के बाप को पाकर अतीन्द्रिय सुख को पाते हैं कि नहीं? हर एक अपनी दिल से पूछे – हम अपने को कितना सौभाग्यशाली समझते हैं? बाप के बच्चे बने हैं तो बाप से पूरा वर्सा लिया है? ऐसे भी नहीं बाबा सबको लक्ष्मी-नारायण बनायेंगे। यह पढ़ाई है, जितना जो पुरुषार्थ करे। 
  • प्रजा तो बहुत सहज बन जाती है फिर गद्दी पर कौन बैठेंगे? वह भी मेहनत कर बनाना है। मायाजीत, जगतजीत बनना है। माया से हारे हार है।
  • बाप से शक्ति लेनी है। यह मेहनत तुम बच्चों को करनी है। कोई भी बात में मूंझते हो तो पूछते रहो। बाप पढ़ाते हैं तो इसमें कोई संशय नहीं आना चाहिए ना।

सेवा:

  • सतयुग त्रेता में तो बाप का पार्ट है नहीं। वहाँ बाबा को कुछ भी करना नहीं पड़ता। इस समय मैं बहुत सर्विस करता हूँ।
  • तुम बच्चों को भी और भक्तों को भी राज़ी करना पड़ता है। भक्तों को साक्षात्कार होता है तो वह समझते हैं बस हमने ईश्वर को पाया।