(Murli Date: 06-03-2023)
बाप तुम्हें नई दुनिया के लिए नया ज्ञान देते हैं, जिससे सूर्यवंशी घराना स्थापन होता है, उस घराने के तुम अभी मालिक बन रहे हो।
ज्ञान:
- बरोबर सतयुग में श्री लक्ष्मी-नारायण का घराना है। स्वर्ग होने कारण बहुत सुख है। उस सुख के लिए तुम पुरुषार्थ करते हो, वह है पावन राजधानी।
- संगम पर भेंट की जाती है – कलियुग अन्त में क्या है और सतयुग आदि में क्या होगा, आज क्या है, कल क्या होगा?
- अब बेहद की रात पूरी होती है। फिर कल दिन में राज्य करेंगे। आज पतित दुनिया है, कल पावन दुनिया होगी।
- दिन-प्रतिदिन फुट आधा लम्बा ही बनाते जाते क्योंकि रावण अब बड़ा होता जाता है। तमोप्रधान हो गया है और उनको जलाते ही आते हैं।
- इन 5 विकारों को ही रावण कहा जाता है। यही दु:ख देते हैं, पतित बनाते हैं। तो इन विकारों को छोड़ना चाहिए ना।
- अभी तुम्हारी आत्मा जानती है परमात्मा भी हमारे जैसा ही स्टॉर है। यह जो सितारे हैं उनको नक्षत्र देवता भी कहते हैं। नक्षत्र भगवान नहीं। तुम नक्षत्र सितारे हो।
- वास्तव में हैं सब भाई-भाई। लक्ष्मी-नारायण से लेकर जो भी मनुष्य मात्र हैं सब भाई-भाई हैं अथवा भाई-बहिन हैं क्योंकि प्रजापिता ब्रह्मा की औलाद हैं।
योग:
- तुम हो अनुभवी बच्चे, जिनको परमपिता परमात्मा ने अपना बनाया है और तुम बच्चों ने फिर परमपिता परमात्मा को अपना बनाया है।
- मनुष्य अपने को मनुष्य समझ बात करते हैं। यहाँ अपने को आत्मा समझने की प्रैक्टिस करनी पड़ती है। हम आत्माओं को परमपिता परमात्मा पढ़ाते हैं।
- निश्चय है कि यह वही बेहद का बाप है। हम वर्सा जरूर लेंगे। मनमनाभव, मध्याजीभव, कितनी सहज बात है!
- धन्धाधोरी करते बुद्धि में यह स्मृति रहे कि हम बाबा के बच्चे हैं। हम स्वर्ग के मालिक बनेंगे तो यह खुशी रहेगी। यहाँ भी बाबा के गले का हार बनने के लिए क्यू है। सारा मदार पुरुषार्थ पर है। बाप को याद करना, यह बुद्धि की दौड़ है। बाकी काम आदि भल करते रहो।
- आत्मा की दिल यार दे, हथ कार डे…. आशिक माशूक एक जगह बैठ थोड़ेही जाते हैं।
- काम-काज आदि सब कुछ करते बुद्धि उनके तरफ रहती है। तो यहाँ भी बुद्धि एक के साथ चाहिए, जो हमको स्वर्ग का मालिक बनाता है।
- मेरे बने हो तो अब मेरे साथ योग लगाओ और मेरे बनकर फिर तुम पवित्र नहीं रहेंगे, नाम बदनाम करेंगे तो बहुत सज़ा खायेंगे।
धारणा:
- पहले सिर्फ एक-एक बात का निश्चय हो जाए कि बाप आया हुआ है स्वर्ग बनाने। बस यह तीर लग जाए तो झट बाप का बन जाएं।
- हम शिवबाबा के बच्चे हैं। वह स्वर्ग का रचयिता है। यह नशा रहना चाहिए।
- जब तक खुशी नहीं आती तो बाबा कहेंगे पाई-पैसे के निश्चय वाले हैं। पक्के निश्चय वाले को खुशी का पारा बहुत चढ़ा रहता है।
- बाप के गले का हार बनने के लिए बुद्धि की दौड़ लगानी है। याद की यात्रा में रेस करनी है।
- शरीर निर्वाह अर्थ कर्म करते स्वदर्शन चक्र फिराना है। कभी भी सतगुरू का निंदक नहीं बनना है। नाम बदनाम करने वाला कर्म नहीं करना है।
सेवा:
- बाबा ने कहा है स्वदर्शन चक्र का ज्ञान मेरे भक्तों को देना। उनको समझाने से झट यह निश्चय होगा बरोबर हम 84 जन्म लेते हैं।
- यादगार में जो गोवर्धन पर्वत को उठाने में हर एक की अंगुली दिखाई है – यह आपके सहयोग की निशानी है। चित्र में बाप का साथ भी दिखाते हैं तो सेवा भी दिखाते हैं। अभी आप बच्चे बापदादा के सहयोगी बने हो तब यादगार बना है।