(Murli Date: 09-03-23)
“तुम्हें बाप के आक्यूपेशन और गुणों सहित उसे याद करना है, याद से ही तुम विकर्माजीत बनेंगे, विकारों की मैल भस्म होगी”
ज्ञान:
- आत्मा है सूक्ष्म ते सूक्ष्म, जिसका पता नहीं पड़ता। कब अन्दर प्रवेश करती है फिर निकल जाती है, बहुत महीन बातें हैं। उनका साक्षात्कार भी दिव्य दृष्टि से ही देख सकते हैं।
- वह ब्रह्म कहते हैं तो ब्रह्म का भी साक्षात्कार हो पड़ेगा। अखण्ड लाइट ही लाइट देखने में आयेगी। ब्रह्म तत्व तो जरूर बड़ी रोशनी देखने में आयेगी। परन्तु परमात्मा कोई वह चीज़ तो नहीं है ना, जो मनुष्य समझ बैठे हैं।
- तुम बच्चों की भी बुद्धि में आगे लिंग रूप रहता था। अभी तो बुद्धि में है कि वह स्टार है। आत्मा का वही रूप है, दूसरी कोई चीज़ हो नहीं सकती। परमात्मा भी वही बिन्दी रूप है।
- लक्ष्मी-नारायण की इतनी महिमा है, उनमें क्या ब्युटी है? आत्मा और शरीर दोनों सतोप्रधान पवित्र हैं। हर्षितमुख हैं, गोरे हैं।
- आत्मा तो बहुत सूक्ष्म चीज़ है ना। समझाया जाता है आत्मा मैली हो जाती है तो लाइट कम होती है। यह लाइट कम और जास्ती की भी बहुत महीन बात है।
- हम दीपक का मिसाल देते हैं, परन्तु आत्मा उनसे भी छोटा सा स्टार है। साक्षात्कार होता है देखा और गया।
- मुरलीधर को ही ज्ञानी तू आत्मा कहा जाता है। तुम बच्चे जानते हो बाप तो है निराकार।
- पहले नारायण की आत्मा आयेगी फिर लक्ष्मी की आयेगी। स्वयंवर करेंगे तब विष्णु युगल रूप कहलायेंगे। राधे कृष्ण बरोबर विष्णु के दो रूप हैं।
योग:
- सर्वव्यापी समझने के कारण कहेंगे सब भगवान के रूप हैं। बुलाते हैं परन्तु बुद्धि में लक्ष्य नहीं है। परमपिता परमात्मा तरफ बुद्धि जाती नहीं है।
- किसी भी जीव आत्मा की बुद्धि में यह नहीं आता कि हम उस ज्योतिलिंगम् को याद क्यों करते हैं? वह हमको क्या देते हैं, जो हम उनको याद करते हैं? जो बहुत अच्छा देकर जाते हैं, उनको याद किया जाता है।
- अब तुम बाप का सिमरण करते हो। बाप ने अपना रूप बताया है। तुम जानते हो शिवबाबा को याद करने से विकर्म विनाश होते हैं। भल और मनुष्य शिव को याद करते हैं परन्तु इस ज्ञान से याद नहीं करते।
धारणा:
- आत्मा में पुराने उल्टे सुल्टे भक्ति के संस्कार जो हैं वह जब निकलें तब ज्ञान की धारणा हो।
- योग हो तब विकर्म विनाश होते जायें और बुद्धि शुद्ध होती जाये। पहले थोड़ा भी ज्ञान सुनने से कितना नशा चढ़ा और भागे।
- वास्तव में ब्रह्मा की सन्तान तुम भी हो, ब्राह्मणों की शुरूआत संगम पर ही होती है। ब्रह्मा द्वारा हम ब्राह्मण पढ़ते हैं। रूद्र ज्ञान यज्ञ की सम्भाल करते हैं।
- हम अपने विकारों की आहुति देते हैं। यज्ञ में सब कुछ स्वाहा किया जाता है ना। तो हम रूद्र ज्ञान यज्ञ में और कोई किचड़ा नहीं डालते, अपने पापों को स्वाहा करते हैं।
- धारणा तब हो जब योग में रहें फिर विकर्म भी विनाश हो, बुद्धि पवित्र नहीं होगी तो अविनाशी ज्ञान रत्न ठहरेंगे नहीं।
- बच्चों को समझाया है कि पहले भोग लगाकर फिर खाया जाता है क्योंकि उनका ही सब दिया हुआ है। तो फिर पहले उनको याद कर भोग लगाते हैं, आह्वान किया जाता है। फिर जैसेकि साथ में मिलकर खाते हैं।
- बाप भल निष्कामी है लेकिन भोजन का भोग जरूर लगाना है। बहुत शुद्धि से भोजन बनाकर बाबा के साथ बैठकर खाना है।
- इस रूद्र यज्ञ में योगबल से अपने पाप स्वाहा करने हैं। आवाज में नहीं आना है, चुप रहना है। बुद्धि को योगबल से पवित्र बनाना है।
सेवा:
- बाप तो कहते हैं मैं आया हुआ हूँ तुम्हारी सर्विस करने। हम तो तुम्हारा पूरा निष्कामी सर्वेन्ट हूँ।
- जो अपने नाम-मान और शान का त्याग कर बेहद सेवा में रहते हैं वही परोपकारी हैं।