(Murli Date: 20-03-23)
“सच्चे बाप के साथ सच्चा होकर रहो तो कदम-कदम पर पदमों की कमाई जमा होती जायेगी” |
ज्ञान:
- एक है शान्तिधाम, दूसरा है सुखधाम, तीसरा है दु:खधाम। तुम क्या चाहते हो तो फिर हम बतायें कि यह साधना अथवा पुरुषार्थ करो। साधना वा पुरुषार्थ एक ही बात है।
- सतयुग में तो है एक धर्म। वह है सतोप्रधान दुनिया। यथा राजा रानी तथा प्रजा सतोप्रधान। यहाँ है यथा राजा रानी तथा प्रजा तमोप्रधान। यह कांटों का जंगल है, वह फूलों का बगीचा है।
- तो मार्ग हैं ही दो। हठयोग और राजयोग। यह राजयोग है स्वर्ग के लिए। राजाओं का राजा स्वर्ग में बनेंगे। स्वर्ग स्थापन करने वाला है परमपिता परमात्मा। वही राजयोग सिखलाते हैं।
- यह एक लॉ है जिसको छोड़ भागे हो उनका फिर कल्याण करना है। पहले तुम अच्छी रीति समझो फिर चैरिटी बिगन्स एट होम। तुमने स्त्री को छोड़ा है। अगर बाल ब्रह्मचारी होगा तो मात-पिता को छोड़ा होगा, उनको भी समझाना है। कायदे कानून तो पहले समझाने हैं।
- समझते हैं गृहस्थ में रहते और विकार में न जाये, यह हो नहीं सकता। लेकिन उन्हें कोई भगवान सर्वशक्तिवान की मदद थोड़ेही है। न कोई में राजयोग सिखाए स्वर्ग की स्थापना करने की ताकत है।
- दोनों दरवाजों की चाबी बाप के पास है। स्वर्ग का फाटक खुलता है तो मुक्ति का भी खुलता है। मुक्ति में जाने सिवाए स्वर्ग में जा कैसे सकते। दोनों गेटस इक्ट्ठे खुलते हैं।
योग:
- अगर मुक्ति चाहते हो तो अच्छा बाप को याद करो तो विकर्म विनाश हों। और तुम बाप के पास चले जायेंगे। यह एक ही रास्ता स्वयं बाप बतलाते हैं और स्वदर्शन चक्र भी फिराते रहेंगे।
धारणा:
- यह है राजयोग। गृहस्थ व्यवहार में रहते कमल फूल समान रहना है। यह प्रवृत्ति मार्ग है।
- अगर तुमको सुख घनेरे चाहिए तो गृहस्थ व्यवहार में रहते राजयोग सीखो। पावन भी रहना है फिर दोनों में से जो रहे, बंधायमानी नहीं है।
- स्वर्ग का मालिक बनने वाला नहीं होगा तो लटकना थोड़ेही है, बाप और वर्से को याद करना है और पवित्र रहना है।
- मुक्ति के लिए बाप को याद कर विकर्म विनाश करने हैं और जीवनमुक्ति के लिए स्वदर्शन चक्रधारी बनना है, पढ़ाई पढ़नी है।
सेवा:
- अब बच्चों को किसको समझाने की तरकीब भी सीखना है कि बेसमझ को कैसे समझायें।
- रहमदिल बनकर भटकने वालों को घर का रास्ता बताना है। मुक्ति और जीवनमुक्ति का वर्सा हर एक को बाप से दिलाना है।