दिवाली: परमात्मा संग आत्मा के जीत का यादगार

दिवाली जोकि हिंदुओं के प्रमुख त्याहारों में से एक है। ये एक दिन की दीवाली नहीं परंतु पूरे पांच दिन तक इस त्याहार का यादगार मनाया जाता है। पांच दिन पूरे क्रम के अनुसार घटित हुई विशेष कार्य का यादगार है। जोकि कभी इस सृष्टि पर किसी समय परमात्मा और आत्मा की हुई जीत का गायन है। अनेको वेदों, पुराणों में जिसका जिक्र किया गया है अनेक कथाओं के रूप में।

दिवाली यादगार है, परंतु किस वृतांत का?

ये पांच दिन एक यादगार को अलग अलग माध्यम से संबोधन का यादगार है। इस यादगार को अब इस दुनिया में त्योहार के रूप में मनाया है। त्योहार इसलिए क्योंकि विजय के दिनों का यादगार है। अब प्रश्न ये उठता है विजय किसके ऊपर, किसी मनुष्य, किसी काल या किसी राक्षस के ऊपर।

वास्तव में ये उन महान और महीन दिनों का यादगार है जब परमात्मा ने अपने कुछ कोटो में कोई साथियों को एक विशाल कार्य हेतु शिक्षा प्रदान की। बड़े ही अनमोल, रहस्मई ढंग से उन सपूतों की पालना हुई। उन्हों को एक विशाल कार्य के निमित चयन किया गया जो स्वयं परवरदिगार जैसे बनने वाले थे। ये विशाल कार्य था विश्व के सम्पूर्ण परिवर्तन का कार्य। यानी नए विश्व के नव निर्माण का कार्य जो होने चला था।

इस अद्भुत कार्य की कार्य शीला स्वयं स्वम्भू परमात्मा ने इसकी बागडोर अपने हाथों ली। और चयन किये हुओं के साथ से पुरानी, अव्यवस्थित, जडजड़ीभूत, भ्रष्टाचारी, नीरस, दुखद दुनिया को खत्म कर नए दुनिया के नव निर्माण हेतु ये यज्ञ रचा।

अच्छा, अब इस दीवाली त्योहार जो यादगार है उसके पांच दिन का अलग अलग रीति यादगार है। जैसे कि-

पहला दिन- धनतेरस

कथा यह कहती है कि देवासुर संग्राम के समय समुद्र मंथन के समय धन्वंतरि देवता उससे प्रगट हुए। उनको हर मर्ज के उपचार का देवता कहते हैं। उनके एक हाथ में अमृत था और दूसरे हाथ में ज्ञान का पुस्तक। अब इसके यादगार में घरों में साफ सफाई की जाती है। अब वास्तव में इसका क्या अभिप्राय है?

सफाई किसकी? अपने पुराने संस्कार, स्वभाव। अपने पुराने विचार को बदल नए युग के लिय होने वाले विचार धारण करने हैं। पुरानी बातें, अपने खुद के संस्कार, बातें जो इस पुरानी दुनिया का प्रतीक हैं, रावण के राज्य होने का प्रतीक हैं। ऐसे बातों, धारणाओं की पूरी तरह से सफाई।

दूसरा दिन:नरक चतुर्दशी

दूसरा दिन धन्वंतरि त्रयोदशी के रूप में मनाते हैं। माना कि तीन श्रापों से मुख होने का प्रतीक। जो कि इस मायावी illusion वाली दुनिया में समस्त संसार मानवजाति जो रावण से श्रापित हुई है। इन श्राप से मुक्त होने का दिन है। तो जब खुद को ज्ञान के आईने में देखा गया। तो आसार संसार में जीते हुए खुद के ही स्वभावों, धारणाओं और चलन के कारण जो पाप हुए, जाने और अनजाने में वो उस ज्ञान के आईने में स्पष्ट दिख गए। अब उनको साफ करके मानव जीवन एक श्रेष्ठ जीवन जीने के लिए उन श्राप से मुक्त हुआ, ये दिन उसकी यादगार है। बात ये भी कही जाती है कि नरकासुर का संहार श्रीकृष्ण द्वारा हुआ बताते हैं। और 16000 रानियों के मुक्ति के दिन से भी संबोधित करते हैं। अब रहस्य ये की वो परमात्मा अपने मुख्य साथियों को इस रावण की दुनिया से पहले मुक्त कराये, उनका चयन कर उन्हें नए दुनिया के लिये अपना लेते है। उन्हों का श्राप नरक में रह रहे मनुष्यों से मुक्त हो जाता है।

तीसरा दिन: महा लक्ष्मी पूजन

देवासुर संग्राम में समुद्र मंथन के समय लक्ष्मी जी को पुनः श्री नारायण वर लेते हैं। अब महा लक्ष्मी , ये श्री नारायण और श्री लक्ष्मी के combined रूप का प्रतीक है। लक्ष्मी को अन्न धन से समृद्ध कर देने वाली देवी कहते हैं। अर्थात भरपुरता का प्रतीक , समृद्धि और खुशहाली का प्रतीक। अब जब परमात्मा द्वारा चयन हुओं के साथ से रावण पर विजय हो जाती है, इस रावण के श्राप से मुक्ति हो जाती है। तो  नए जन्म जहां हर चीन भरपूर है, सुख शांति समृद्धि समाहित है। ऐसे संसार मे पुनः लौटने का प्रतीक सच्ची सच्ची दीवाली है। श्री राम श्री लक्ष्मी अयोध्या वापिस लौटे और पुनः अपने राज्य में श्रेष्ठता का राज्य करने लिए राजकीय हुए। ऐसे रामराज्य होने का प्रतीक सच्ची सच्ची दीवाली है।

चौथा दिन:- गोवर्धन यादगार

जब इस सन्सार में हाहाकार मचता है , चारों तरफ प्रकृति और तमोप्रधानता के भयावह दृश्य दिखाई देते हैं , तब परमात्मा इस दृश्य को परिवर्तन करने के लिए, मनुष्य आत्माओं की रक्षा करने हेतु इस भयावह दृश्य रूपी पहाड़ उठाते हैं। और अपने चयनित साथियों का सहयोग लेकर पुरानी दुनिया का परिवर्तन करते हैं। परमात्मा नई दुनिया में कदम रखने का रास्ता खोलते हैं।

पांचवा दिन: भाई दूज/ विश्वकर्मा दिवस

अब जब पुरानी दुनिया, पुरानी प्रवृत्ति , पुरानी रचना को अलविदा कह दिया तो अब परमात्म साथियों का मिलन भाई भाई की स्मृति स्वरूप होकर मिलने को भाई दूज कहा गया।

इसकी यादगार विश्वकर्मा दिवस के यादगार से भी मशहूर है। विश्वकर्मा, ब्रह्मा का पुत्र। मास्टर ब्रह्मा। जो कि नई दुनिया के नए राज्य का नाव निर्माण करते हैं। पुरानी दुनिया अलविदा हो रही है। अब नई दुनिया में राज्य करने हेतु विश्व महाराजन और विश्व महारानी के एक अद्वैत राज्य के सिंहासन के निर्माण के लये विश्वकर्मा का गायन है। He is the engineer of the golden ruling dynasty. और विक्रमादित्य के राजतिलक का गायन भी इस पांचवे दिन का यादगार है।

अब वास्तव में यादगार है परमात्मा और आत्मा की कहानी का। दुखों की दुनिया को सुखों में परिवर्तित कर श्रेष्ठ कार्य एवं श्रेष्ठ समाज का निर्माण करना, ये श्रेष्ठ कर्तव्य परम ज्योति ही पूर्ण करते हैं।