”मीठे बच्चे – क्रोध भी बहुत बड़ा कांटा है, इससे बहुतों को दु:ख मिलता है इसलिए इस कांटे को निकाल सच्चे-सच्चे फूल बनो”
प्रश्न:- कांटे से फूल बनने वाले बच्चों को बाप कौन सी आथत (धैर्य) देते हैं?
उत्तर:- बच्चे, अभी तक कांटे से फूल बनने में जो माया विघ्न डालती है – यह विघ्न एक दिन खत्म हो जायेंगे।तुम सब स्वर्ग में चले जायेंगे। यह कलियुगी कांटे खत्म हो जायेंगे। बाप ने तुम्हें संगमयुगी पार्ट में डाला है। माया भल मुरझा देती है लेकिन ज्ञान का बीज अविनाशी है – यह बीज विनाश नहीं हो सकता।
गीत:- न वह हमसे जुदा होंगे…
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) बहुत-बहुत निडर बन कांटों को फूल बनाने की सेवा करनी है। सबमें अविनाशी बीज बोते रहना है।
2) क्रोध का बहुत बड़ा कांटा है, उसे छोड़ बहुत-बहुत प्यारा बनना है। प्यार से सर्विस करनी है। सर्विसएबुल का रिगार्ड रखना है।
वरदान:- सर्व के गुण देखने वा सन्तुष्ट करने की उत्कंठा द्वारा सदा एकरस उत्साह में रहने वाले गुणमूर्त भव
सदा एकरस उमंग-उत्साह में रहने के लिए जो भी संबंध में आते हैं उन्हें सन्तुष्ट करने की उत्कंठा हो। जिसको भी देखो उससे हर समय गुण उठाते रहो। सर्व के गुणों का बल मिलने से उत्साह सदाकाल के लिए रहेगा। उत्साह कम तब होता है जब औरों के भिन्न-भिन्न स्वरूप, भिन्न-भिन्न बातें देखते,सुनते हो। लेकिन गुण देखने की उत्कंठा हो तो एकरस उत्साह रहेगा और सर्व के गुण देखने से स्वयं भी गुणमूर्त बन जायेंगे।
स्लोगन:- बेहद के वैराग्य वृत्ति का फाउण्डेशन मजबूत हो तो सेकण्ड में अशरीरी बनना सहज है।
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