(Murli Date: 07-03-2023)
“विजयी रत्न बनने के लिए जीते जी मरकर देही-अभिमानी बन बाप के गले का हार बनने का पुरुषार्थ करो” |
ज्ञान:
- मनुष्य जब शरीर छोड़ते हैं तो दुनिया मिट जाती है, आत्मा अलग हो जाती है तो न मामा, न चाचा कुछ भी नहीं रहते।
- पिछाड़ी में जो आत्मायें आती हैं, हो सकता है एक जन्म लेना पड़े। बस, वह छोड़ फिर वापस चली जायेगी। पुनर्जन्म लेने का भी बड़ा भारी हिसाब-किताब है।
- सालिग्राम हैं जो बनाकर और फिर उनकी पूजा करते हैं? शिव को तो समझेंगे कि यह परमपिता परमात्मा है।
- शिवबाबा को जो याद करते हैं, वह स्वर्ग में तो आ जायेंगे। भल ज्ञान किसको न भी दें तो भी स्वर्ग में आ जायेंगे। वह तो कितने ढेर होंगे! परन्तु मुख्य 108 हैं। मम्मा भी देखो कितनी जबरदस्त रत्न है! कितनी पूजी जाती है!
- आत्माओं की भी बड़ी-बड़ी माला है। वैसे ही फिर मनुष्य सृष्टि की बड़े ते बड़ी माला है। प्रजापिता ब्रह्मा है मुख्य। इनको आदम, आदि देव, महावीर भी कहते हैं। अब यह बड़ी गुह्य बातें हैं।
- तुम हो पाण्डव सम्प्रदाय। वह जिस्मानी पण्डे हैं, तुम रूहानी पण्डे हो। वह जिस्मानी यात्रा पर ले जाते हैं। तुम्हारी है रूहानी यात्रा।
- यह भी समझाया जाता है जब विनाश होता है तो यह कलियुग का पुर नीचे चला जाता है। सतयुग ऊपर आ जाता है।
- कलियुग की रात पूरी हो, दिन शुरू हुआ और बादशाही चली। यह क्या हुआ! अल्लाह अवलदीन का खेल दिखाते हैं ना। तो कारून के खजाने निकल आते हैं। तुम सेकेण्ड में दिव्य दृष्टि से वैकुण्ठ देख आते हो।
योग:
- स्वदर्शन चक्र का राज़ भी बाबा ने कितना साफ बताया है। 84 जन्मों के चक्र को ब्राह्मण ही याद कर सकते हैं।
- यह है बुद्धि का योग लगाकर चक्र को याद करना। परन्तु माया घड़ी-घड़ी योग तोड़ देती है, विघ्न डालती है।
- तुम जानते हो हम शिवबाबा के बने हैं तो यह देह का भान छोड़ना पड़े। अपने को आत्मा अशरीरी समझना मेहनत का काम है। इसको कहा ही जाता है राजयोग और ज्ञान।
धारणा:
- अब तुम बच्चे कहते हो – हे बाबा, हमारी देह के जो भी सम्बन्ध हैं वे सब त्याग अब हम तुम्हारे गले का हार बनने आये हैं अर्थात् जीते जी आपका होने आये हैं। पुरुषार्थ तो शरीर के साथ करना पड़ेगा। अकेली आत्मा तो पुरुषार्थ कर न सके।
- अब तुम बच्चों को देही-अभिमानी जरूर बनना है। जन्म-जन्मान्तर तुम देह-अभिमानी रहे हो।
- बच्चे कहते हैं अब जीते जी मरकर बाबा हम आपके गले का हार जरूर बनेंगे।
- गृहस्थ व्यवहार में रहते पवित्र बन बाप का बनना है। हम वहाँ के रहने वाले हैं फिर सतयुग में सुख का पार्ट बजाया।
- तुम जानते हो हम शिवबाबा के बने हैं तो यह देह का भान छोड़ना पड़े। अपने को आत्मा अशरीरी समझना मेहनत का काम है।
- बाबा तुम्हें कितने राज़ समझाते हैं। बच्चों को मेहनत कर धारणा करनी है।
- कहते हैं आज गुह्य ते गुह्य सुनाता हूँ। नहीं सुनेंगे तो धारणा कैसे होगी? अब बाप बैठ समझाते हैं तुम मेरे बने हो तो शरीर का भान छोड़ो, मैं गाइड बन आया हूँ वापिस ले जाने।
- इस शरीर का भान छोड़ पुरानी दुनिया से जीते जी मरना है। अशरीरी रहने का अभ्यास करना है। स्वयं को स्वर्ग के वर्से का लायक भी बनाना है।
सेवा:
- इस समय तुम बच्चे ही बाप को जानते हो और मददगार बनते हो। प्रजा भी तो मदद करती है ना।
- बाप समान सभी को रिफ्रेश करने की सेवा करनी है। चात्रक बन ज्ञान डांस करनी और करानी है।