दुआयें देना, दुआयें लेना !

(Murli Date: 17-02-2023)

अगर कोई मेहनत का काम आवे भीं तो दिल से कहना, बाबा, मेंरा बाबा, तो मेहनत खत्म हो जायेगी।

सबसे सहज पुरुषार्थ ही है – दुआयें देना, दुआयें लेना। इसमें योग भी आ जाता, ज्ञान भी आ जाता, धारणा भी आ जाती, सेवा भी आ जाती।

हर एक बच्चा सहज पुरुषार्थी, सहज भी, तीव्र भी। द्रढ़ता को यूज करो। बनना ही है, हम नहीँ बनेंगे तो कौन बनेगा। हम ही थे, हम ही हैं और हर कल्प हम ही होंगे। इतना दृढ निच्च्य स्वयं में धारण करना ही है ।

63 जन्म मेहनत की, एक जन्म परमात्म प्यार, मुहब्बत से मेहनत से मुक्त हो जाओ। जहाँ मुहब्बत है वहाँ मेहनत नहीँ, जहाँ मेहनत है वहाँ मुहब्बत नहीँ ।

भगत तो बलि चढाते हैं लेकिन आप आज के दिन जो भी हद का मैं पन हो, उसको बाप को देकर समर्पित करो ।

कोई भी विकार चाहे छोटे रूप में, चाहे बड़े रूप में आने का निमित्त एक शब्द का भाव है, वह एक शब्द है – “मैं”। बॉडीकानसेस का मैं ।

यह चीज ज्यादा अच्छी लगती है लेकिन आसक्ति नहीं है। विशेष अच्छा क्यों लगता ।

प्रसाद कभी किसका पर्सनल गाया नहीँ जाता, प्रभु प्रसाद कहा जाता है। फलाने का प्रसाद नहीँ कहा जाता है। सहयोग मिलता है, अच्छी बात है लेकिन सहयोग दिलाने वाला दाता तो नहीँ भूले ना।

दाता को भूल जाए, लेवता को याद करे!

आजकल बापदादा ने बच्चों का चार्ट देखा, अपने वृत्ति से वायुमण्डल बनाने के बजाए कहाँ-कहाँ, कभी-कभी दूसरों के वायुमण्डल का प्रभाव पड़ जाता है ।

आत्मा को देख बात करना है, आत्मा से आत्मा बात कर रहा है। आत्मा देख रहा है। तो वृत्ति सदा ही शुभ रहेगी और साथ-साथ दूसरा फायदा है जैसी वृत्ति वैसा वायुमण्डल बनता है। वायुमण्डल श्रेष्ठ बनाने से स्वयं के पुरुषार्थ के साथ-।

 आपने भी मन के भोजन व्यर्थ संकल्प, निगेटिव संकल्प, अपवित्र संकल्पो का व्रत रखा है। पक्का व्रत रखा है ना।

 जैसे श्वास के बिना रह नहीँ सकते हैं, ऐसे ब्राह्मण आत्माये उमंग-उत्साह के बिना ब्राह्मण जीवन में रह नहीँ सकते हैं । ऐसे अनुभव करते हो ना ।